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शिव की आराधना क्यों?

शिवजी त्रिनेत्रधारी है ऐसा वेदों में कहा गया है उनकी दो आंखें अक्सर प्रेमपूर्ण और आदर दिखाई देती हैं किंतु इनका तीसरा नेत्र भयंकर रुद्राक्ष है इसी अस्त्र से मन मदन सहार हुआ अर्थात मनुष्य के मन सेविका रूपी राक्षसों का संहार करने के लिए भी इसी ने तृप्ति विद्युत प्रवाह की आवश्यकता है सामर्थ्यशाली शिव जी के साथ रहने वाली शक्ति अर्थात कात्यायनी/ गौरी/ पार्वती/ भवानी भी इसी बात को सूचित करती है पार्वती माता को साक्षात शक्ति का अवतार माना गया है इसलिए पार्वती को शिव स्वरूप मान कर उनका भी ध्यान करना चाहिए साक्षात शक्ति ही कृपा हो और महामृत्युंजय शिव शंकर जी का आशीर्वाद हो तो साधक  कठिन से कठिन स्थिति से भी उभर सकता है और मनुष्य मन से दुख पीड़ा दरिद्र और भय का नाश हो जाता है वास्तव में मनुष्य की मृत्यु आयुष्य काल की समाप्ति है किंतु इस विज्ञान युग में मृत्यु के कई प्रकार हैं आए दिन रोगों के नए नाम सुनने को मिलते हैं प्रदूषण कुपोषण अपराध दरिद्रता यह सभी मृत्यु के लघु रूप है जो मनुष्य को धीरे-धीरे मिट्टी की तरफ ले चलते हैं मृत्यु से डरने की बात नहीं उसके स्वरूप से डरना है मृत्यु तो अटल है उसे टाल नहीं सकते किंतु वही मृत्यु किसी भयावह वह पीड़ा दा इस ग्रुप में हो तो मन में भय उत्पन्न होता है मृत्यु के समय यह आत्मा को भी गहरे अंधकार की ओर ले चलता है

रुद्राक्ष भगवान शिव प्रदत प्रकृति का अनुपम उपहार है रुद्राक्ष शब्द की निष्पति संस्कृत के दो शब्दों से हुई है रुद्र और अक्ष अक्ष का तात्पर्य आशुतोष भगवान शिव की उस कल्याणकारी दृष्टि से है जो धारण करने वाले का पथ निर्बाध बनाती है रुद्राक्ष अर्थात शिव की आंख शिवपुराण के अनुसार रुद्राक्ष का संबंध भगवान शिव के अश्रु कणों से है मान्यता है कि सती वियोग के समय जब शिव का हृदय द्रवित हुआ तो उनके नेत्रों से आंसू निकल आए जो अनेक स्थानों पर गिरे और इन्हीं से रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई पदम पुराण में कहा गया है कि सतयुग में त्रिपुर नामक दैत्य ब्रह्मा जी के वरदान से प्रबल हो कर संपूर्ण लोगों के विनाश का कुचक्र कर रहा था तब देवताओं के विनय करने पर भगवान शिव ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखते हुए उसे विकराल बाण से मार गिराया इस कार्य में अत्यंत श्रम के कारण भगवान शिव के शरीर से पसीने की जो बूंदे पृथ्वी पर पड़ी उनसे रुद्राक्ष वृक्ष प्रकट हो गए श्रीमद् देवी भागवत के अनुसार त्रिपुर राक्षस को मारने के लिए भगवान की आंखें सहस्त्र वर्षों तक खुली रही और थकान के कारण उन से आंसू बह निकले जिनसे रुद्राक्ष वृक्ष का जन्म हुआ रुद्राक्ष के उत्पत्ति के संबंध में कथाएं चाहे कितनी भी हो परंतु विभिन्न पौराणिक एवं धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शिव हैं इस कारण हिंदू धर्म में रुद्राक्ष को भगवान शिव का रूप कहा गया है और इसके अत्यंत पवित्र एवं सर्व मंगलमय पाप मुक्ति दायक दुख नाशक के अतिरिक्त लक्ष्मी दायक एवं सिद्धिदायक दीर्घायु अक्षय पुण्य प्रदाता तथा मोक्षदाता माना गया है

रुद्राक्ष के प्रकार          

 रुद्राक्ष विभिन्न रूप प्रकारों में मिलता है जिसमें एक मुखी रुद्राक्ष एक मुखी काजू दाना रुद्राक्ष दो मुखी रुद्राक्ष तीन मुखी रुद्राक्ष 4 मुखी रुद्राक्ष पांच मुखी रुद्राक्ष छह मुखी रुद्राक्ष सात मुखी रुद्राक्ष 8 मुखी रुद्राक्ष 9 मुखी रुद्राक्ष 10 मुखी रुद्राक्ष 11 मुखी रुद्राक्ष 12 मुखी रुद्राक्ष 13 मुखी रुद्राक्ष 14 मुखी रुद्राक्ष 15 मुखी रुद्राक्ष गौरी शंकर रुद्राक्ष और गणेश रुद्राक्ष इत्यादि      

रुद्राक्ष का औषधीय उपयोग      

आयुर्वेद चरक संहिता आदि में औषधि के रूप में इसके उपयोग का उल्लेख मिलता है क्षय रोग चर्म रोग कुष्ठ रोग और कैंसर रोग आदि में इसका उपयोग लाभकारी होता है

भगवान शिव का रुद्राक्ष से संबंध

महाशिवरात्रि का पुण्य पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में बड़ी श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ मनाया जाता है इसके अतिरिक्त विश्व में जहां-जहां हिंदू जन रहते हैं वह भी इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है इनका नाम आशुतोष भी है आशु अर्थात शीघ्र तोष अर्थात् संतुष्ट शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव का नाम की आशुतोष है भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं थोड़ा गंगाजल एवं बिल्वपत्र भक्ति पूर्वक चढ़ा देने मात्र से शीघ्र संतुष्ट होकर भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं भगवान शिव सृष्टि के सभी प्राणियों पर  दया दृष्टि रखते हैं साधारणतया हम जिन प्राणियों से घृणा एवं प्यार करते हैं उनको भगवान शंकर ने अपनी शरण दे रखी है भूत प्रेत गण ता सर्प बिच्छू आदि से उनका प्रेमभाव दरिद्र उनकी समदृष्टि ही दर्शाता है गले में सर्प धारण करने का तात्पर्य काल पर विजय प्राप्ति से है जिससे इनका 1 नाम महामृत्युंजय भी है वृष की सवारी का तात्पर्य काल पर विजय एवं धर्म की रक्षा है इनका वृद्धि एवं अमंगल भेज होने पर भी यह सभी प्राणी मात्र के लिए मंगल करता एवं दरिद्र हर ता  है इनकी पूजा करने वाला व्यक्ति कभी  दरिद्र नहीं होता है बे भक्तों की इच्छा अनुसार भोग एवं मोक्ष देने वाले हैं शिव का शाब्दिक अर्थ कल्याणकारी होता है इस दृष्टि से महाशिवरात्रि का अर्थ हुआ कल्याणकारी रात्रि चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं यह तिथि उनकी प्रिय तिथि है महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को किया जाता है वैसे तो प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी को शिव भक्त मास शिवरात्रि के रूप में व्रत करते हैं लेकिन इस शिवरात्रि का शास्त्रों के अनुसार बहुत बड़ा महत्व है ईशान संहिता के अनुसार शिवलिंग गति यो भू तो कोठी सूर्य समप्रभा अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्ध रात्रि के समय भगवान शिव परम ज्योतिर्मई लिंग स्वरूप  हो गए थे इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं सिद्धांत शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न भिन्न मत हैं परंतु सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आरंभ एवं  अर्ध रात्रि के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिवरात्रि का व्रत होता है समर्थ जनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए रात्रि के चारों प्रहर में भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए इस विधि से किए गए व्रत से जागरण पूजा उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है व्यक्ति जन्म जन्म के पापों से मुक्त होता है इस लोक में सुख भोग कर व्यक्ति अंत में शिव सायुज्य को प्राप्त करता है जीवन पर्यंत इस विधि से श्रद्धा विश्वासपूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है जो लोग इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हो  बे रात्रि के आरंभ में तथा अर्ध रात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हो तो पूरे दिन व्रत करके साईं काल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महा पुण्य फल की प्राप्ति होती है गृहस्थ जनों के अलावा Sanyasi लोगों के लिए इस महाशिवरात्रि की साधना एवं गुरु मंत्र दीक्षा आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है अपनी गुरु परंपरा के अनुसार सन्यासी इस रात्रि में साधना आदि करते हैं महा सिद्धि दाहिनी होती है इस समय में किए गए दान पुण्य शिवलिंग की पूजा स्थापना का फल प्राप्त होता है इस शुभ मुहूर्त में पारद को अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल में स्थापित करने से घर परिवार व्यवसाय और नौकरी में भगवान शिव की कृपा से विशेष उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है परम दयालु भगवान शंकर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं

महाशिवरात्रि व्रत 

हवन क्यों ?

फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः 

आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है।जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है ।तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।

गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की । क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है ?अथवा नही ? उन्होंने ग्रंथों  में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए । पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। 

यही नहीं  उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।

यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है ।

अगर चाहें तो अपने परिजनों को इस जानकारी से अवगत कराए । हवन करने से न सिर्फ भगवान ही खुश होते हैं बल्कि घर की शुद्धि भी हो जाती है

   बिल्व पत्र क्यों? अद्भुत बिल्व पत्रों का रहस्य

बिल्वपत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है बिल्वाष्टक और विष्णु पुराण में इसका विशेष उल्लेख है अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है श्रीमद् देवी भागवत में प्रश्न यह है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भोलेनाथ काप्रिय भक्त हो जाता है उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती है और अंत में मोक्ष की  प्राप्ति होती है

बिल्व पत्र मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं अखंड तीन पत्तियों बिल्व पत्र के मैंने पत्थर से 21 पत्तियों पर बेलपत्र और शहद बिल्व पत्र का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है यह उनका संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है

अखंड बिल्व पत्र इसका विवरण बिल्वाष्टक इस प्रकार है अखंड बिल्व पत्रं नंदिकेश्वर सिद्धार्थ लक्ष्मी यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है एक मुखी रुद्राक्ष के समान ही इस का विशेष महत्व है यह वास्तु दोष का निवारण भी करता है इसे गले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चौमुखी विकास होता है

तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र 

इस बिल्वपत्र का वर्णन बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं चौधरी भाई उत्तम तीन जन्म पाप सहारन एक बिल्व पत्र शिवा और प्रणब दिया जाए तो फलों से उत्तरोत्तर वृद्धि होती है इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से वक्त को धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है यह तीन गुणों से युक्त होने के कारण भगवान भूतभावन श्री कालेश्वर को प्रिय है इसके साथ एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए तो फलों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्तों को धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है रीतिकालीन कवि श्री पदमाकर जी ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है देखिए त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पाया तो फल चार एक फूल दिनों धतूरा को

भगवान आशुतोष त्रिपुरारी सब का भंडार भर देते हैं आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं तीन पत्तियों वाले बिल्वपत्र में अखंड बिल्व पत्र पाए जाते हैं परंतु यह बहुत दुर्लभ है

6 से लेकर 21 पंक्तियों वाले बिल्वपत्र

यह मुख्यता नेपाल में पाए जाते हैं किंतु भारत में भी कहीं-कहीं मिलते हैं जिस तरह रुद्राक्ष कई मौकों वाले होते हैं उसी तरह बिल्वपत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं

श्वेत बिल्वपत्र

जिस तरह श्वेत सांप श्वेत टोंक श्वेत आंख श्वेत दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह श्वेत बिल्वपत्र भी होता है यह प्रकृति की अनमोल देन है इस बिल्व पत के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्र पाए जाते हैं इसमें हरी पत्तियां नहीं होती इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है वनस्पति में बिल का अत्यधिक महत्व है यह मूलतः शक्ति का प्रतीक माना गया है किसी किसी पेड़ पर 5 से 7.50 किलो वजन वाले बिल भी पाए जाते हैं चिकित्सा विज्ञान में बिल का विशेष महत्व है आजकल के व्यक्ति इसकी खेती करने लगे हैं इसके

फल से शरबत अचार और मुरब्बा आदि बनाए जाते हैं यह हृदय रोगियों और उदर विकार से ग्रस्त लोगों के लिए रामबाण औषधि है

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